Tithi Dani (India/UK) immigrated to the UK in 2015. She has been working as a journalist in radio, news channel, and newspapers in India. She studied English Literature and worked as an Indian Chef in one of the Accor Hotel Groups. Her manuscript of the poetry collection 'Prarthnarat Battakhein' was selected and honourned by the Indian High Commission in London under the publication grant scheme and later it received Vagishwari award in India. Her poems, articles, stories have been widely published in various reputed literary magazines, newspapers, special issues of magazines.

 

 

English

 

 

Hindi


I AM A RAINBOW

 

Consisting of alluring, exuberant colours,

I am a rainbow.

I don't have legs and hands,

But I have a body,

An ethereal body,

Permeates from one edge to another edge

To feel and touch myself

I don't have a physical body

 

But the sun and droplets of rain

Can embrace me,

Caress me the same way

As I caressed all the scattered

Myriad pieces of human subconscious.

 

When they think,

They neither own the body

Nor own the mind;

The very moment-

By borrowing a few extra breaths from flowers

I fill in my invisible lungs

And make my existence ubiquitous.

 

 

 

A TALK WITH AN INANIMATE OBJECT

 

 

Duvet cover's silky waves are breathing

Their bosoms are rising up and falling

While my breath stops.

To embrace me

They are running towards me,

But my subtle emotions say

They are directly talking

To my wide- awake mind.

 

I have been aloof so many times.

In the crowd,

In my husband's shelter-called home sweet home,

In the lap of my beloved’s unconditional love and affection,

 

And in the presence of my parents;

But…haven’t felt as lonely as I am today

This is the extreme of my loneliness

This is the very first time

Of being absolutely alone.

 

I feel for a moment like a psycho,

So I examine my sanity

I find everything very solidly rooted

Confirming thoroughly I fall asleep.

 

From the coast of my inner planet’s sea

I pick up some pebbles of fancy

Comprise of fabulous stories

And adorn them

 

Around the balcony of my new notebook,

Where a 4 feet long Dragon tree

Is waiting for my familiar smile

Without blinking eyes;

As if spraying the liquid of it

All over its companions.

 

Next morning again

I feel the same as yesterday

Now I have understood

The duvet cover is indebted to my smile

 

 

 मैं एक इंद्रधनुष हूं

 
मनमोहक, ऊर्जस्वी रंगों से मिलकर बना

मैं एक इंद्रधनुष हूं।

मेरे पैर और हाथ नहीं हैं,

लेकिन मेरे पास एक शरीर है,

एक ईथर शरीर,

जो एक किनारे से दूसरे किनारे तक फैला है

खुद को महसूस करने और छूने के लिए,

मेरे पास भौतिक शरीर नहीं है।

 

लेकिन सूरज और बारिश की बूंदें

गले लगा सकते हैं मुझे

दुलार भी सकते हैं

बिल्कुल उसी तरह

जिस तरह मैंने सभी बिखरे हुए

 

असंख्य मानव अवचेतन के टुकड़ों को

दुलार किया है;

जब वे सोचते हैं

न तो उनका स्वामित्व शरीर पर है

और न ही मन पर;

उसी क्षण,

मैं अपने अदृश्य फेफड़ों में ऑक्सीजन भरता हूं

अपने अस्तित्व को सर्वव्यापी बनाता हूं।

 

 

निर्जीव वस्तु से एक संवाद

 

 

लिहाफ़ के खोल की रेशमी लहरें सांस ले रही हैं

उनके उरोज उठ रहे हैं और गिर रहे हैं

जबकि मेरी सांस रुक जाती है।

गले लगाने के लिए

वे मेरी ओर दौड़ रहे हैं,

लेकिन मेरी सूक्ष्म भावनाएं कहती हैं

वे सीधे बात कर रहे हैं

मेरे व्यापक जागृत मन से।

 

 मैं कई बार विलग रह चुकी हूं-

भीड़ में,

मेरे पति के आश्रय-स्थल में

जो प्यारा घर कहलाता है;

मेरे प्रिय की बेशर्त प्रेम और स्नेह की गोद में,

और मेरे माता-पिता की उपस्थिति में;

लेकिन ... मुझे आज जैसा महसूस नहीं हुआ

यह मेरे अकेलेपन का चरम है

बिल्कुल अकेले होने का यह पहली बार है।

 

 

मैं एक पल के लिए मनोरोगी की तरह महसूस करती हूं

इसलिए मैं अपनी स्थिरबुद्धिता की जांच करती हूं

मुझे हर चीज बहुत ठोस रूप से मिलती है

अच्छी तरह से पुष्टि करते हुए मैं सो जाती हूं।

 

मेरे आंतरिक ग्रह के समुद्र तट से

मैं फैंसी कहानियों के कुछ कंकड़ उठाती हूं

जिसमें शानदार कहानियां हैं

और उन्हें सजाती हूं

 

मेरी नई नोटबुक की बालकनी के आसपास,

जहां 4 फीट लंबा ड्रैगन ट्री है

बिना पलकें झपकाए;

मेरी परिचित मुस्कान की प्रतीक्षा करता है

मानो उसके सभी साथियों पर

इसका तरल छिड़क रहा हो।

 

अगली सुबह फिर से

मैं कल की तरह ही महसूस करती हूं

अब मुझे समझ में आ गया है

कि लिहाफ़ का खोल मेरी मुस्कान का ऋणी है

 

 


Translated from Hindi ito English by the poet